Monday, January 24, 2011

अतीत की परछाईयाँ

जंजीरों में जकड़ी हुई अपनी परछाई को देख के एक सिहरन सी मेरे ज़ेहन में दौड़ गयी। पहले तो मैंने उसे पहचानने से इन्कार कर दिया। ये मैं नहीं हो सकती! मैं तो पुरवाई सी स्वछन्द हूँ। हमेशा मैंने ज़िंदगी अपने ही नियमों से जी है। वही किया है जो अच्छा लगा, वही कहा जो दिल में आया। यह परछाई शायद मेरे साथ चल रहे राही की होगी। कुछ समय तक ऐसे ही झूठे आश्वासन खुद को देती रही। परन्तु झूठ तो लंगड़ा होता है। कहाँ देर तक चल सकता है? खुद ही धराशायी होकर मुंह के बल गिर सच का पता बतला देता है।

कुछ देर तालाब के किनारे बैठ अपनी थकान दूर कर रही थी की फिर से मेरी नज़र उसी जकड़ी हुई परछाई पर पड़ी। चौंक कर मैंने अपने चारों और नज़र घुमाई पर कोई नज़र न आया। उस तालाब के किनारे मेरे सिवा और कोई न था। मैं जो करती, परछाई भी वही करती। क्या यह वाकई मैं हूँ? ये क्या खेल खेल रही हैं मेरी नज़रें मुझसे? ये कैसी जंजीरों से जकड़ी हुई हूँ मैं जो आज तक मेरी नज़रों से दूर रही?

पास जा के मैंने उन्हें देखने की कोशिश की। पर ये क्या? ये जंजीरों की कड़ियाँ नहीं। ये तो छोटी छोटी खिड़कियाँ हैं। हर एक खिड़की एक कहानी। मेरे अतीत की कहानी। इन्हीं खिडकियों में से एक में झाँक कर देखा मैंने जहां पल रही थी इच्छाएं, जन्म ले रहे थे ख्वाब। उनमें से ज़्यादातर इच्छाएं अब मर गयी हैं। और ख़्वाबों का क्या है, वे तो ख्वाब बन कर ही रह गए। क्यों देखे होंगे वो ख्वाब? दिल और दिमाग के द्वंद्व में दिल अक्सर दबंग हो युद्ध जीत तो लेता है परन्तु बाद में जीवन की सच्चाईयों से हार कोने में पड़ा सिसकता रहता है। ऐसी ही कई हार जीत की कहानियों से लिखी यह डोर मेरे अक्स से लिपटी हुई है।

सच ही कहा है, अतीत हमारा साथ नहीं छोड़ता। कितना ही उससे दूर जाना चाहे वह साए सा हमारे साथ चलता रहता है। अतीत की डोर तो नितांत लम्बी ही होती रहती है, और उसकी हम पर पकड़, और मज़बूत। हमारे आने वाले कल पर बीते हुए कल की छाप मिटाए नहीं मिटती। हम चाहे खुद को कितना स्वतंत्र समझें, पर हमारे हाथ हमारे अतीत से बंधे हैं।

पर यह डोर लोहे की ज़ंजीर नहीं। यह डोर मुझसे लिपटी ज़रूर है पर जकड़ी नहीं है। मेरा अतीत मेरे भविष्य से juda ज़रूर है पर उसकी उड़ान रोक नहीं सकता। उड़ना तो इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। कई कहानियां कह कर यह डोर लम्बे क़दमों पर काबू करती है करती हैं ताकि व्यक्ति अपनी सीमा से अधिक तेज़ चल कर गिर न जाए।

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