Sunday, January 30, 2011

बोलती तस्वीरें..

बात की है कभी तस्वीरों से? आज मेरी तस्वीरों से घंटों बातचीत हुई. कई कहानियां, कई किस्से सुनाये उन्होंने मुझे. हर एक तस्वीर एक नया ही किस्सा सुना के चली गयी. उन्हीं किस्सों में से कुछ आज मैं अपनी ज़ुबानी सुनाती हूँ.

सूरज का घर


सागर की अनंत यात्रा में आकाश उसका अकेला साथी है. रंगहीन सागर को आकाश ने अपना ही रंग चढ़ा दिया. अपने साथी के रंगों से सजा सागर अटठ्खेलियाँ खाता हुआ अपने सफ़र में नित आगे बढ़ता जाता है. कहीं दूर जाकर सागर और आकाश मिलते हुए दिखते हैं. कहते हैं वहीँ कहीं सूरज का घर है. सुना है कि उसका घर पानी से भरा है. जैसे जैसे वो अपने घर के नज़दीक आता है, वैसे वैसे घर की ठंडक उसकी ताप को कम करने लगती है. घर घुसते ही ठंडा पानी उसकी सारी ताप बुझा देता है और तब अँधेरा हो जाता है.  दिन भर की चढ़ाव उतार के बाद घर ही उसे शीतलता दे सकता है. खुद को जला कर पृथ्वी को जीवन देने वाला सूरज  कुछ ही घंटों बाद फिर से तपने को तैयार हो धीरे धीरे घर से बाहर निकलता है. तब आकाश उसके पानी को सोख उसमें अपनी तीली से आग लगा देता है और शुरुआत होती है हमारे दिन की.


खेल खेल में


कभी बादलों के पीछे, तो कभी पेड़ों के, लुका छिपी सूरज का पसंदीदा खेल है. पर मुंबई की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में कहाँ किसी के पास समय कि सूरज के साथ खेल खेले. यहाँ पर तो सभी किसी अजीब सी होड़ में हैं. ऐसा नहीं है कि यहाँ लोग खेल नहीं खेलते पर इनके खेल थोड़े अलग हैं जो कि या तो गाड़ियों के काले शीशों के पीछे या फिर काली इमारतों के अन्दर खेले जातें हैं. पूरी दुनिया को रौशनी से भरने वाले सूरज में भी इतना दम नहीं कि इन अँधेरी दीवारों के अन्दर जा इन खेलों को उजागर कर सके. इन स्याह खेलों की सूरज को कहाँ समझ? वो तो भरी रौशनी में ही खेलता है. ऐसे ही एक दिन उसकी लुका छिपी में मैंने उसे पेड़ों के पीछे से झांकते हुए पकड़ ही लिया. अब तुम्हारी बारी है मुझे ढूँढने की, यह कहकर अपनी गाड़ी के काले शीशे ऊपर चढ़ाते हुए मैंने गाड़ी सुरंग के अन्दर मोड़ ली.

2 comments:

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  2. कुछ सपने होते हैं जो देखे जाते हैं
    कुछ तसवीरें होती हैं जो बोलती हैं
    और कुछ आँखें जो सिर्फ सपने ही देखती हैं
    कुछ कान जो सिर्फ तस्वीरों की आवाज ही सुन पाते हैं
    दिल जो आदम ज़ात के शारीरिक भूगोल के बहार होता है (बकौल विज्ञान)
    जाने क्या - क्या सुनता है, सुनाता है, समझाता है
    तनु वेड्स मनु की तनु जी की तरह - संवेदनाएं रासायनिक आधार पे पनपती हैं |
    (तनु जी के सारे गुनाह, हमने उनकी खूबसूरती, सुल्फे, सिगरेट और दारु पीने की प्रैक्टिस की वजह से अपनी साइड मुआफ से कर दिया | भाड़ में जाएँ मन्नू भैया, वैसे भी ऐसी लड़कियां सिर्फ मेट्रो में ही आसानी से उपलब्ध हैं | वाह मन्नू भैया - आह तनु जी, हाय तनु जी)
    बहुत सालों जीने के बाद जागने पर दिल की आवाज कभी कभी कान तक पहुच जाती है, शुक्रिया जमाने का
    ऐसे ही सुनिए तस्वीरों को, अच्छा लगा

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